आप वैदिक वाङ्मय के स्वाध्याय में रूचिकर व्यकतित्व के धनि हैं. आप द्वारा बहुत से लेख गए हैं. आप ने कुछ पुस्तकों महत्वपूर्ण पुस्तकों का गुजराती भाषा में अनुवाद भी किया है.
मेरी दृष्टि में “वेदवाणी" में ऐसी लेखमाला जो महर्षि दयानन्द जी के वेद विषयक मन्तव्यों से विरुद्ध वेदों को ऋषियों द्वारा रचित, पौरूषेय, तथा मानवीय अनित्य इतिहास युक्त ग्रन्थ बताती हो, प्रकाशन करने योग्य नहीं है। और यदि प्रकाशित करनी ही हो तो आवश्यक सम्पादकीय टिप्पणियों के साथ करना चाहिए ताकि अनावश्यक भ्रम उत्पन्न न हो।